जज्बात

 

जब छत पर खड़ा होकर इस बड़े अनजाने शहर की सूरत को निहारता हूँ, तो अपने घर और अपनों से दूर खास वजह ओर मुकाम की लड़ाई फिर से जीवंत हो उठती है….

हां ये खुला आसमां ओर उसमें उड़ते धुएँ के गुबार जिंदगी की उलझनों और बदलती परिस्थितियों से परिचित करवा ही देते है, तो कभी बादलों में बिजली की गरज शहर में उठते शोर को शांत कर अपना कहर ढाह लेती है,

फिर बादलों की हल्की सी फुहार धधकती धरती पर फिर से ठंडी लहरें अवाप्त करती है और मौसम सुहावना हो उठता है,

ऐसा ही कुछ खेल हमारी जिंदगी में है हमारे आसपास का मौसम व परिस्थितिययां अपने अनुकूल जरूर होगी बस हमें बरसात के बादल बनने की जरूरत है, मतलब साफ है मैदान कोई भी हो वर्चस्व कायम हो सकता है, बस समर्पित होकर काम करने की जरूरत है ।।

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